Nabi E Kareem Ki Zindagi / Nabi Pak Ki Zindagi Ka Waqi - (Part-4)
मदीना मस्जिद:
प्यारे रसूल आप (स०) नबी होने के बाद 13 साल तक मक्का शहर में रहे |और वहां दीन का काम करते रहे |और हर तरह का दुख सहते रहे | इस जमाने को मक्की दौर कहते हैं | इसके बाद आप (स०) ने मदीना को हिजरत की और 10 साल मदीना में रहे | इस जमाने को “मदनी दौर” कहते हैं | मदीना अरब का एक मशहूर शहर है. मदीना के लोग हर साल हज के लिए मक्के जाते, प्यारे रसूल आप (स०) की बातें ध्यान से सुनते, उनमें से बहुत से मुसलमान हो गए | इस तरह अल्लाह का दीन मदीने पहुंचा |
हिजरत - मक्के में दीन की बातें :
मक्के में दीन की बातें पहुंचाते पहुंचाते आप (स०) को 13 साल हो गए थे | मक्का वालों ने आप (स०) को बहुत सताया | जब उनमें हुजूर (स०) की बातों को सुनने वाला कोई ना रहा | उल्टे जान के दुश्मन हो गए | तो अल्लाह ताला ने आपको हुकुम दिया कि | अब मदीने को हिजरत कर जाएं, बहुत से मुसलमान मदीने को हिजरत कर चुके थे |
Nabi E Kareem Ki Zindagi - एक रात काफिरों ने तय किया:
एक रात काफिरों ने तय किया | तौबा तौबा !! प्यारे रसूल आप (स०) को जान से मार दिया जाए | इस नूर को हमेशा के लिए बुझा दिया जाए | बदबख़्तो नेयह तरकीब सोची और हर कबीले का एक एक आदमी जमा हो गया | और प्यारे रसूल आप (स०) के घर को घेर लिया और जब आप (स०) घर से निकले तो सब एक साथ आप (स०) पर हमला कर दिए | आप (स०) जान से मार देने की कोशिश में लग गए | अल्लाह मियां ने आपको इस साजिश की खबर दे दी | आप (स०) कुरान शरीफ की आयतें पढ़ते हुए घर से निकले | मुट्ठी में कुछ कंकरिया भरकर उनकी तरफ फेंकी, अल्लाह ताला ने उनकी आंखों पर पर्दा डाल दिया, और प्यारे रसूल आप (स०) को कोई ना देख सका | आप (स०) सच्चे दोस्त हजरत अबू बकर (रजिo) भी आप (स०) के साथ हो लिए |
मदीना मस्जिद - का सफर :
और दोनों मिलकर मदीने की ओर चल दिए | रास्ते में एक घर है गारे सौर इसमें दोनों छुप गए | जिसको लोग आज गारेहिरा कहते हैं | काफिरों ने पीछा किया | दूर-दूर जासूस भेजें | एक काफिर तो गार के मुंह तक पहुंच गया | हजरत अबू बक्र (रजिo) डरे, फिर प्यारे रसूल ने फरमाया डरो नहीं अल्लाह हमारे साथ है | अल्लाह ने उसका काफिर की मत मार दी | और वक्त अलार्म को ना देख सका |
3 दिन के बाद आप (स०) मदीना को रवाना हुए | मदीने के लोग कई दिन से आप (स०) का इंतजार कर रहे थे | आप (स०) पहुंचे तो लोग बहुत खुश हुए | बच्चियां गीत गाने लगी और हर एक आदमी चाहता था | हुजूर (स०)
हमारे घर ठहरे | हुजूर (स०) ने फरमाया, मैं वही करूंगा जहां मेरी ऊंटनी जाकर बैठ जाएगी | हजरत अयूब अंसारी (रजिo) के वहां ऊंटनी ठहरी और आप (स०) वही ठहरे |
मक्के से जो मुसलमान मदीने पहुंचते थे, वह मुहाजिर कहलाए | मुहाजिर सब बेसहारों के समान थे | फिर मदीने के मुसलमानों ने हर तरह से उनकी मदद की | इसलिए यह लोग अंसार कहलाए | प्यारे रसूल आप (स०) ने मुजाहीरो (रजिo) और अनुसार (रजिo) मैं भाईचारा करा दिया | यानी अंसार और मुजाहीरो को एक दूसरे का भाई बनाया | फिर तो अंसार (रजिo) ने उनको रहने के लिए घर लिए, शादी और ब्याह कराया कारोबार में साझा किया | और हर बात में उनको अपने से ज्यादा समझने लगे | अल्लाह मियां ने भी उनकी मदद फ़रमाई |
प्यारे नबी बहुत ही रहम दिल हुआ करते थे | आप तो दुनिया के लिए रहमत बनकर आए थे | आप सबका भला चाहते थे, और आप सब के साथ नेक सलूक किया करते थे | और जो उन्हें पत्थर मारा करते थे उसको भी दुआएं दिया करते थे | दीन के लिए घरबार को छोड़ दिया हिजरत करके मदीने गए | सोचा था कि वहां सुख से रहेंगे, सबको अल्लाह का पैगाम पहुंचाएंगे | मुसलमानों को अल्लाह की मर्जी पर चलाएंगे, परंतु काफिरों ने वहां भी चैन न लेने दिया | मदीने जा जाकर चढ़ाई करते, मदीने के आस-पास यहूदी बसा करते थे | वह अपने आपको हजरत मूसा अलैहिस्सलाम की उम्मत मानने वाले कहते थे | मगर काम सारे काफिरों जैसा किया करते थे | यह लोग भी प्यारे नबी के दुश्मन बन गए | काफिरों ने मिलकर आप (स०) को धोखा देने लगे | मुसलमानों की बातें काफिरों तक पहुंचाते, झूठी बातें बनाकर लड़ाई पर उभरते | मदीने में कुछ लोग मुनाफिक प्रवृत्ति के थे | यह देखने में मुसलमानों के दोस्त मगर दिल से उनके दुश्मन थे | यह लोग भी काफिरों से मिलकर मुसलमानों को धोखा देते थे |
Nabi E Kareem Ki Zindagi / Nabi Pak Ki Zindagi Ka Waqia:
एक बार झूठी खबर सुनकर काफिरों ने मुसलमानों पर धावा बोल दिया | अल्लाह ताला ने मुसलमानों को भी लड़ाई का हुक्म दे दिया | काफिर बहुत ज्यादा थे, मुसलमान बहुत कम थे, काफी 1000 से ऊपर थे, मुसलमान
केवल 313 थे | और काफिरों के पास बहुत सारा सामान था, पर मुसलमान निहत्थे थे उनके पास कोई भी हथियार नहीं थे, बद्र के स्थान पर दोनों में जंग हुई | बड़ी घमासान लड़ाई हुई, मुसलमान सच्चे थे, और प्यारे नबि भी सच्चाई पर थे | अल्लाह ने मदद की मुसलमान जीत गए, काफिर हार गए | और काफिरों के बड़े-बड़े सरदार भी मारे गए | काफिरों के 70 आदमी मारे गए, और 70 पकड़े भी गए,बाकी सब अपना उतरा हुआ मुंह लेकर भाग गए |
दूसरे साल काफिरों ने बहुत बड़ी सेना इकट्ठी कर ली | मुसलमानों पर फिर धावा किया | उहद के पास फिर लड़ाई हुई | मुसलमान कम थे मगर अल्लाह की मदद से फिर जीत गए, खुशी में कुछ मुसलमान एक घाटी के पहले से हट गए | और फिर काफिरों ने तुरंत धावा बोल दिया, जिससे मुसलमान घबरा गए, उनके पैर उखड़ गए | कई बहादुर मुसलमान शहीद हो गए | और आप सल्लल्लाहोअलेही वसल्लम चाचा हजरत हमजा (रजि०)
इसी लड़ाई में शहीद हुए | हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दो दांत भी इसी लड़ाई में शहीद हो गए | और हजरत सल्ला वाले वसल्लम लड़ाई में भी जमे रहे | अल्लाह पर भरोसा था,अल्लाह की मदद आई | फिर मुसलमान और संभले | और आखिर में मुसलमान जीत गए और काफिरों को मैदान छोड़कर भागना पड़ा |
काफिरों से मुसलमानों की और बहुत सी लड़ाइयां हुई उस जमाने में, लड़ाई में मुसलमान कम होते, और काफ़िर ज्यादा हुआ करते थे | मुसलमान निहत्थे होते और काफिरों के पास हथियार हुआ करते थे | लेकिन मुसलमान सच्चाई पर होते और अल्लाह के लिए लड़ते,और काफिर अपने लिए लड़ते | इसलिए अल्लाह मुसलमानों की मदद करता,और काफिरों को मुंह छुपा कर भागना पड़ता था | और आखिर में थक हारकर काफिरों को लड़ाई करनी ही पड़ी | और मुसलमानों का काफिरों से समझौता हो गया |
काफिरों और मुसलमानों में कुछ दिन लड़ाई बंद रही | फिर काफीरो ने अंदर खाना खुराफात शुरू कर दिया था, कई मुसलमानों को काबे में शहीद भी कर दिया था | यह सुनकर प्यारे रसूल सल्लल्लाहूअलेहीवसल्लम 10,000 मुसलमानों को साथ लिए और मक्के की ओर चल पड़े | और काफिर सटपटा गए, कुछ तो घर बार छोड़कर भाग गए | कुछ ने तो माफी मांग ली और मुसलमान हो गए | प्यारे रसूल सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम ने सब को माफ कर दिया, जिन्होंने सताया था उन्हें भी छोड़ दिया | अब मक्के पर मुसलमानों का कब्जा हो गया | और काबा को बुतो से पाक साफ किया गया | फिर धीरे-धीरे सारे अरब में "इस्लाम" का झंडा बज गया |
हिजरत का दसवां साल था, उस साल प्यारे नबी सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम ने हज का इरादा किया | तो 1,24000 मुसलमान आप सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम के साथ जाने के लिए तैयार हो गए | हर तरफ मुसलमान ही मुसलमान नजर आ रहे थे, इस्लाम की यह कामयाबी देखकर हुजूर सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम एहसास होने लगा कि अब आप सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम का काम पूरा हो चुका | और इस दुनिया से वापस जाने का वक़्त करीब आ गया |
इतना बड़ा काफिला मंजिल पर मंजिल तय करता हुआ मक्का पहुंच गया | सब लोग प्यारे नबी रसूलुल्लाह सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम के साथ हज किए | इस मौके पर हुजूर सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम ने अपना मशहूर खुत्बा (प्रवचन) दीया | आप सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम ऊंटनी पर सवार थे, सब लोग आप सल्लल्लाहूअलैही वसल्लम के पास अरफात के मैदान में जमा थे फिर आप सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम ने फरमाया” ए लोगों मेरी बात कोअच्छी तरह से समझ लो | हो सकता है मैं इस मौके पर कभी तुम्हारे साथ ना रहूं | तो ए लोगों अरबी को गैर अरबी पर,और गैर अरबी कोअरबी पर, गोरे को काले पर,और काले को गोरे पर, कोई बढ़ाई नहीं | बढ़ाई तो उसे हासिल है जो खुदा से ज्यादा डरने वाला है | दुनिया के सारे मुसलमान आपस में भाई भाई हैं | जो खुद खाओ वही अपने गुलामों को खिलाओ | जो खुद पहनो वही अपने गुलामों को भी पहनाओ, मैं तुम्हें एक चीज छोड़े जाता हूं | अगर तुमने उसे मजबूती से पकड़ लिया तोरा से ना भटको गे कभी वह चीज है अल्लाह की पाक किताब कुरान इसमें लिखी बातों पर हमेशा अमल करना |
इसके बाद आप सल्लल्लाहूअलैहीवसल्लम ने लोगों से मालूम किया, कि क्या मैंने पैगाम पहुंचा दिया |लोगों ने एकजुट होकर आवाज दिया-” बेशक आपने पहुंचा दिया “ फिर आप सल्लल्लाहुअलैहिवसल्लम ने आसमान की तरफ उंगली उठाई और फरमाया “अल्लाह तू गवाह है “ |
प्यारे नबी सल्लल्लाहूअलेहीवसल्लम काम पूरा हो गया | आपने अल्लाह का पैगाम पहुंचा दिया | अल्लाह के दीन पर चल कर दिखा दिया | दीन फैलाने के लिए मुसलमानों की एक बहुत बड़ी जमात तैयार कर दी | अब अल्लाह ने आपको अपने पास वापस बुला लिया |
|| अल्लाहुम्मा सल्ले अला मोहम्मद, व आलाआलेही मोहम्मद ||
|| व् बारीक़ व् सल्लिम ||
दीन पूरा हो गया |अब प्यारे नबी के बाद कोई नबी ना आएगा | दीन की बातें बताने का काम अब मुसलमानों के जिम्मे है | हर जमाने के मुसलमान अपने समय के इंसानो तक दीन पहुंचाने के जिम्मेदार है |अल्लाह एअल्लाह ! हमको ताकत दे हम से अपने दीन का काम ले ले |हम हमेशा तेरे दीन पर जमे रहे | नेकी के रास्ते पर चलते रहें और दूसरों को नेकी के रास्ते पर लाते रहे | और उन्हें हमेशा तेरे रास्ते की और बुलाते रहे | हाय अल्लाह तू हमारा सहारा है | और तेरी खुशी हमारा सबसे अच्छा बदला है | “आमीन”
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