Nabi E Kareem Ki Zindagi | nabi pak ki zindagi ka waqia | उन दिनों नबी के जमाने में परिवार के लोग बच्चों को देहात भेजते थे (Part-1)

Nabi E Kareem Ki Zindagi | Nabi Pak Ki Zindagi Ka Waqia

( Part-1 )

Nabi Ki Zindagi Ka Bayan:

उन दिनों नबी के जमाने में परिवार के लोग बच्चों को देहात भेजते थे | वही उनकी परवरिश होती थी |आपकी अम्मी जान ने भी कुछ ऐसा ही किया | हजरत हलीमा ( राजी ) ले आप सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम की परवरिश की | हजरत हलीमा ( राजी ) के कबीले का नाम साद हुआ करता था | इसलिए उनको हलीमा सादिया कहते थे | वह बहुत नेक औरत थी सल्लल्लाहुअलैहि वसल्लम ने उनका दूध पिया, खुली हवा में पले बढ़े | खूब तंदुरुस्त हुए और साफ-सुथरी बोली भी सीखी | और उसके 2 साल के बाद मक्का शरीफ आए |अम्मी जान ने उनको देखा तो उनको बहुत खुशी हुई |पर किसी कारण उन दिनों मक्का शहर में बीमारी फैली हुई थी इसलिए अम्मी जान ने हजरत हलीमा ( राजी ) के साथ आपको फिर भेज दिया |



Nabi E Kareem Ki Zindagi | nabi pak ki zindagi ka waqia | उन दिनों नबी के जमाने में परिवार के लोग बच्चों को देहात भेजते थे  (Part-1)

Nabi E Pak Ki Zindagi :

जो आप (स0) की भोली सूरत देखता, आप (स0) को प्यार करता | आप (स0) की मीठी बातों को सुनता खुश हो जाता | आप (स0) बीबी हलीमा  ( राजी ) के बच्चों के साथ मोहब्बत से रहते थे |वह भी आप सल्ला वसल्लम से मोहब्बत करती थे | अपने साथ खेल में शामिल करके बकरियां चराने जाते तो आप ( स0 ) को अपने साथ ले जाते |

Hamare Nabi Ki Zindagi :

जब आप (स0) चार साल  के हुए तो अपनी मम्मी के पास आ गए मम्मी आप  आप (स0) को देखकर बहुत खुश हो गई | मोहब्बत से पालने लगी |  आप (स0) 6 साल के हुए तो  आप (स0) को लेकर मायके गई और रास्ते में बीमार हो गई और चल बसी | आप (स0) यतीम और अनाथ हो गए | मां-बाप दोनों का साया सिर से उठ गया | उन्हें दाई आप (स0) को उनके दादा के पास ले कर आई | दादा मियां ने जब यह बात सुनी तो उनको बहुत ही दुख हुआ | मगर वह विचारे करते भी तो क्या मरना, जिलाना तो सिर्फ अल्लाह के हाथ में है | आई हुई घड़ी को कौन टाल सकता है |

Nabi Ki Zindagi Kaisi Thi :

बड़े होने के बाद प्यारे नबी (स0) एक बार अब्वा मकान से गुजरे और अपनी अम्मी जान का कब्र देखकर उनका दिल भर आया | आप (स0) आंखों में आंसू देख कर साथी भी होने लगे |

दादा मियां भी आप (स0)को बहुत प्यार किया करते थे | दादा मियां नहीं आप (स0) की परवरिश की | बड़ी ही मुसीबत से पाला जब आप (स0) 8 साल के हुए तो दादा मियां भी इस दुनिया से चल बसे | मरते समय दादा मियां ने आप (स0) को अबूतालिब के हवाले कर दिया | अबूतालिब आप (स0) के चाचा थे | आप (स0) के कई चाचा थे |लेकिन उन सब में अबूतालिब सबसे अच्छे हुआ करते थे | वह आप (स0) से बहुत मोहब्बत किया करते थे | हमेशा साथ लिए फिरते थे कभी भी आप (स0) को अकेला नहीं छोड़ते थे | और बहुत ही प्यार करते थे |और किसी तरह की तकलीफ नहीं होने दिया करते थे | कहीं सफर में भी अगर जाते थे तो हमेशा आप (स0) को अपने साथ रखा करते थे |


Nabi E Kareem Ki Zindagi | nabi pak ki zindagi ka waqia | उन दिनों नबी के जमाने में परिवार के लोग बच्चों को देहात भेजते थे  (Part-1)


Nabi Pak Ki Zindagi Ka Waqia :

आप (स0) के चाचा जान तिजारत व्यापार किया करते थे | आप (स0) भी तिजारत व्यापार करने लगे | तिजारत को आप बहुत अच्छा समझते थे | आप (स0) बहुत अच्छे ताजिम व्यापारी हुआ करते थे | हमेशा इमानदारी से रहते और कभी झूठ नहीं बोलते थे | आप (स0) को लोग सादिक और सत्यवादी कहा करते थे | आप (स0) कोई भी मामला बहुत ही साफ सुथरा रखते थे और व्यापार पूरी ईमानदारी के साथ किया करते थे | ( Nabi E Kareem Ki Zindagi ) सब आप (स0)  को आमीन कहा करते थे | और आप (स0) बहुत इज्जत किया करते थे | वह रहने वाले सभी लोग आप (स0) पर बहुत ही ज्यादा भरोसा किया करते थे | घर घर आप (स0) की इमानदारी और अच्छाई की चर्चाएं हुआ करती  थी |

Mere Nabi Ki Zindagi:

मक्का शहर में एक मालदार औरत हुआ करती थी उस मालदार औरत का नाम था खदीजा ( राजी ) बीबी खदीजा  ( राजी ) एक बेवा औरत थी | उनके शौहर मर चुके थे और उनका बहुत बड़ा कारोबार हुआ करता था | वह कारोबार करने के लिए लोगों को रुपए देती | और उनसे होने वाले नफे और लाभ में शरीक कर लेती |

प्यारे नबी (स0)  की ईमानदारी और सच्चाई की चर्चा सुनी तो | बीवी खदीजा ( राजी ) ने चाहा कि आप (स0)  उनका कारोबार माल लेकर सफर पर जाएं आप (स0) ने मंजूर कर लियाऔर बीवी  खदीजा ( राजी )  के गुलाम मैंशरा  को लेकरश्याम के सफर पर रवाना हुए | आप (स0) नेम बड़ी ही मेहनत, और अकलमंदी, और सच्चाई के साथ कारोबार किया | बहुत सा लाभ कमा कर आप (स0) शाम के सफ़र से लौटे और बीवी खदीजा को पैसे पैसे का हिसाब दे दिया करते थे | बीबी खदीजा बहुत ही नेक औरत हुआ करती थी | 

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